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अब्दुल हादी काविश
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अरे दिल क्यूँ हुआ है रे अबस तूँ वहशी-ए-दश्तीकिसी आहू-निगहाँ की तुजे अच्छर का छर है रे
तुराब अली दकनी
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उफ़-रे बाद-ए-जोश-ए-जवानी आँख न उन की उठती थीमस्ताना हर एक अदा थी हर इ’श्वा मस्ताना था
बेदम शाह वारसी
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जब आग धदकती हो उस पर मत छीटियो तेल ख़ुदा रा तुमक्या दिल की ख़ुशी को पूछो हो ऐ यारो इक नाशाद सती
ग़ुलाम नक्शबंद सज्जाद
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जब आग धदकती हो उस पर मत छीटियो तेल ख़ुदा रा तुमक्या दिल की ख़ुशी को पूछो हो ऐ यारो इक नाशाद सती
ग़ुलाम नक्शबंद सज्जाद
शे'र
किया जो मुझ तरफ़ गुल-रू नज़र आहिस्ता आहिस्तावो पहुँची बुलबुल-ए-दिल कूँ ख़बर आहिस्ता आहिस्ता
तुराब अली दकनी
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देखे जो यक-ब-यक गुल-रू तुम्हारी बे-हिजाबी हममिसाल-ए-बुलबुल-ए-शैदा किए अपनी ख़राबी हम
तुराब अली दकनी
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अदब से सर झुका कर क़ासिद उस के रू-ब-रू जानानिहायत शौक़ से कहना पयाम आहिस्ता आहिस्ता
अज़ीज़ सफ़ीपुरी
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कामिल शत्तारी
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इस आईना-रू के वस्ल में भी मुश्ताक़-ए-बोस-ओ-कनार रहेऐ आ’लम-ए-हैरत तेरे सिवा ये भी न हुआ वो भी न हुआ